ग़ज़ल।आराम नही आया तो।
आज तेरा ख़त ,तेरा पैगाम नही आया तो ।
टूट ही गया दिल, मेरा नाम नही आया तो ।
ख्वाबो के शहर में अब धुएं उठने लगे हैं ।
मैं तुमसे मिलने इक शाम नही आया तो ।
फर्क तो पड़ ही गया चाहतो में दूरियों से ।
बढ़ गये दिल के भी दाम, नही आया तो ।
प्यार तो तेरा इक जूनून था, ख्वाहिस थी ।
दर्द मिला दिल को इनाम ,नही आया तो ।
साहिलों से मैं चला था खोजने मंजिल कोई ।
साहिलों पर रह गया गुमनाम ,नही आया तो ।
आ ही जाता मैं तेरे काशिस, तेरे पहलू में ।
छलक ही गया हुश्न -ऐ -जाम नही आया तो ।
फ़िक्र न थी ,दर्द था तुझसे बिछड़ जाने का ।
पर तुम तो लगा बैठे इल्जाम नही आया तो ।
हो रहे थे दर्द में नासूर मेरे दोस्त “रकमिश” ।
फिर कर गये बदनाम आराम नही आया तो ।
….. राम केश मिश्र
अति सुंदर …………….!!
निवतियाँ जी साभार …….