Homeआलोक धन्वाशृंगार शृंगार शुभाष आलोक धन्वा 24/02/2012 No Comments तुम भीगी रेत पर इस तरह चलती हो अपनी पिंडलियों से ऊपर साड़ी उठाकर जैसे पानी में चल रही हो ! क्या तुम जान-बूझ कर ऐसा कर रही हो क्या तुम शृंगार को फिर से बसाना चाहती हो? Tweet Pin It Related Posts जनता का आदमी सूर्यास्त के आसमान भूखा बच्चा About The Author शुभाष Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.