*ऐ आतंकी ऐ गुनाहगार न कर जुल्म बेगुनाहो पर,
माँग अपने गुनाहो की माफी,
न कर जुल्म इन्सानो पर!!
* मासूमो ने बिगाडा है तेरा क्या,
पर फिर भी ले रहा है तू इन मासूमों कि जान!*
*कहते है की काम कर रहे है हम अच्छा जन्नत मिलेगी हमको,
जाओगे तुम जहन्नम मे न मिलेगी तुमको जन्नत!!!
अच्छी कविता है आतकवाद को सबक मिलना ही चाहिये ।
जी धन्यवाद अपको कविता पसंद आई!
आशिमा विचार अच्छे है ….रचना का विस्तार किया जा सकता है !