“मैं समुद्र हूँ,
समुद्र क्या कहता है ? और फिर मैं समुद्र को किस नज़रिए से देखता हूँ, दोनों का समावेश है इस छोटी सी कविता में……………!
“मैं समुद्र हूँ,
“मैं समुद्र हूँ, शांत, सुन्दर, समुद्र जो ठंडक पहुंचाता हूँ,
पर
अफ़सोस, कोई देख न पाया मेरे इस दर्द या आँसू को……..!
पर,
मैंने देखा है, समुद्र को, इसके दर्द और आँसू को
मैंने समुद्र को देखा है, अपनी प्यास बुझाने के लिए,
जिह्वा को खींच पानी की एक बूँद के लिए तरसते हुए………..!
मैंने समुद्र को देखा है, तलाशते, पास से गुजरते,
उन काले घने बादलों को स्पर्श करने की कोशिश करते हुए…..!
मैंने समुद्र को देखा है,आकाश को चूमते हुए,
आकाश खिलखिलाया, समुद्र मुस्कुराया…!
मैंने समुद्र को देखा है, अपनी हर हदें पार करते हुए,
बेताब, चाँद को स्पर्श करने के लिए………..!
मैंने समुद्र को देखा है, उसके उस उतावलेपन
तुम्हारी आँखों की गहराईओं में
अपनी हथेली में, अपने दिल में,
बस एक ही ख्वाव है अब मेरा,
मैं , तुम, और एक समुद्र,
हो साथ सदा…!
हो साथ सदा…!
______________________
ललित निरंजन