कबीर भक्त्त कबीर पंथी कहलायें
जो उन्होंने माना की उसी पर
सरपट दौड़ लगायें
उनकी मूरत बना शिखर पर चोंगा बांध
अलख जगायें।
यह क्या हुई बात !
साईं का भी क्या कहें बात
जो एक बून्द तेल के लिए भटकते थे दिन-रात
उनके सम्मुख आज मनो तेल
जलती हो जाती राख।
यह क्या हुई बात !
जो सम्पूर्ण जीवन गुजार दी गरीबी में
आज उनकी मूरत का पाँव भी
नहीं पड़ती मिट्टी पे
मूरत सिर स्वर्ण मुकुट
सुबह-शाम चढ़ते गुलाब।
यह क्या हुई बात !
कास लोग उनके उद्देश्यो
को समझ जाते
दिन-दुखियो की सेवा करते
भाईचारा निभाते मानव धर्म अपनाते ,
लोगो को कैसे समझाऊ
नरेन्द्र की क्या अवकात।
यह क्या हुई बात !
यह क्या हुई बात !
अच्छा कटाक्ष किया है नरेंद्र जी
धन्यवाद श्रीमान
अब्दे अच्छे विषय पे टिपण्दी की आपने…सर…ये बात सभी के मन में कहीं न कहीं होती है
बेहद अच्छे विषय पे टिपण्दी की आपने…सर…ये बात सभी के मन में कहीं न कहीं होती है
आपको यह रचना अच्छी लगी और अपने प्रशंसा की उसके लिए दिल से धन्यवाद।