आओ दीप जलाये !
शिक्षा में अग्रणी सदैव
अन्धकार से ग्रस्त अभी
धनधान्य से परिपूर्ण हम
चित्त अशांति से त्रस्त सभी
कर्महीन का तमगा पहने
रहते यंहा पर व्यस्त सभी
कभी मिलकर संग बैठे
हुए एक दूजे से रुष्ट कभी
एक डाल के थे हम पंछी
फिर क्यों हम लड़ते अभी
बहुत हुआ ये खेल पुराना
बेबात आपस में लड़ाना
जात धर्म की बात ना होगी
दिलो में अब खटास न होगी
तोड़कर अब ये सारे बंधन
हम नफरत की दीवार गिराये !
आओ दीप जलाये !!
बहुत खूब निवातिया जी. आपको दीवाली की हार्दिक शुभकामनाए
दीपावली के पावन पर्व पर आपकी सुख समृद्धि की कामना के साथ परिवार सहित हार्दिक शुभकामनाये…!!
भेंट स्वरुप ये कविता आपके लिए ……
आओ दीप जलाये….!!
पर्व है खुशियो का
हर्सोल्लास का
सौहार्द से मनाये
आओ दीप जलाये ..!!
पर्व है प्रेम का,
आनद का, प्रकाश का,
हृदय से अन्धकार मिटाये
आओ दीप जलाये …..!!
पर्व है सत्य की विजय का,
एकता और सद्भाव का,
चलो गुलशन से खिल जाए,
आओ दीप जलाये …..!!
पर्व है त्याग का, समर्पण का,
सुख, समृद्धि के प्रसार का,
विश्वाश से मजबूत बनाये,
आओ दीप जलाये…..!!
……..डी. के. निवातियाँ …….
निवातियॉ जी बहुत ठीक कहा आपने ,मानवता सबसे बढ़ कर है धर्मों की आढ़ लेकर ईनसानियत को शर्मिंदा किया जाता है ,जो नहीं होना चाहिए
विचारो को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका किरण जी ……..इसी तरह उत्साहवर्धन कर लेखन के लिए प्रेरित करते रहना ………….बहुत बहुत आभार आपका !!