रेत की तरह तेरी यादों की लहरों से तर-बतर हो जाता हूँ,
जब-जब कोई सुनी सी आकृति, दिल में उमड़ती है |
किनारे की ख्वाहिश में, जब भी कोई शाम ढूंढता हूँ
ये चाँद भी तुझसे न्यौछावर लिए लगता है |
अधूरे ठौर सा आज भी हूँ, ना पूरा होने की ख्वाहिश, ना टूटने की ज़िद
एक बेनाम सी तस्वीर का चेहरा, शायद ये दिल आज भी पेहचानता है |
By Roshan Soni
wah wah roshan soni ji bahut badhya
aapka bahot bahot aabhar naval pal prabhar ji.