यूं चूक मत तू बार-बार
कर शर-संधान फिर एक बार,
भेद दे तू मत्स्य आंख
यूं अवसर मुख तू अब ना ताक ।
बीता समय, हंस हुआ काग
रीता विजन अब तू ना भाग
मानस पर अंकित शंकाओं को
अब तो तू त्याग, अब तो तू त्याग ।
तेरी सहजतओं को डस गया शंशय का नाग
गहरी तामसिकताओं को कर भस्म तू लगा आग,
स्वप्न देख ना अब मात्र तू त्याग चिर निंद्रा
अब तो तू जाग अब तो तू जाग ।
किस पल का है तुझे इंतज़ार?
फिर उठ खड़ा हो अबकि बार
भर हुंकार, कर प्रचंड वार
कर भाग्य से अब हाथ चार!
-जनवरी 2013
व्यवस्था पर सही चोट करती प्रभावशाली रचना.
Thank you sir .can you pls tell me the metods to publise in magzine or in press media.actually the vartani asudhi are seems to you bcz it is writien in english as it is not in it.But meri kaam maiiska bhav aur sabdo ko uttam istamall ka hi lakchya tha.but actully sir, i am 16years boy.vvery thank you sir for your wonderfull comment.my wtsaap number hai 9956238182
उत्कर्ष आप अपनी रचना का लिंक दें! पत्र पत्रिकाओं के पते पर आप अपनी रचनाये अवश्य भेजें। संपादक मंडल को पसंद आईं तो आपकी रचनाएँ अवश्य प्रकाशित होंगी 🙂
आपका बहुत बहुत आभार! आपका उत्साहवर्धन हमें आगे भी प्रेरित करेगा शिशिर जी 🙂
व्यक्ति की अंतरात्मा को जगाती एक प्रेरक रचना !!
धन्यवाद डी. के. जी !
वास्तव में हमारी यह रचना हमें भी हमेशा प्रेरित करती है 🙂