ग़ज़ल (बक्त कब किसका हुआ)
बक्त कब किसका हुआ जो अब मेरा होगा
बुरे बक्त को जानकर सब्र किया मैनें
किसी को चाहतें रहना कोई गुनाह तो नहीं
चाहत को इज़हार न करने का गुनाह किया मैंने
रिश्तों की जमा पूंजी मुझे बेहतर कौन जानेगा
तन्हा रहकर जिंदगी में गुजारा किया मैंने
अब तू भी है तेरी यादों की खुशबु भी है
दूर रहकर तेरी याद में हर पल जिया मैनें
दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है
जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने
ग़ज़ल (बक्त कब किसका हुआ)
मदन मोहन सक्सेना
nice poem for time
nice………..one !!