“खतरे में है आज देश हमारा
लोगो के कुंठित विचारों से
एक ही देश के वासी हम सब
फिर क्यों भिन्न है अपने अधिकारों से ,
किसी को मिलता है आरक्षण
तो कोई शोषण में जीता है
लिए अभिलाषा नयी किरण की
हर पल मरके कोई जीता है ,
बदला है हर इंसान यहाँ का
पर देश की दशा ना अभी बदली है
सुशासन का आस लगाये
आँखे धुंधली आज हो चली है ,
ईमानदारी करती मुजरा है
रिश्वतखोरों की महफ़िल में
पहन कानून की वर्दी
छिपते है अब मुजरिम इनमे ,
पुनः जयचं के आत्माओं में
शरण लिया है भारत में
कर खोखला इस देश को
ला दिया है कंगाली की हालत में ,
जीत सकते है हम अपने दुश्मनो से
पर भयभीत है घर के विभीषणों से ||”