लौ दिए की जगमगाती रहे ,
उम्मीदों के स्वप्न सजाती रहे .
ये जो धवल , श्वेत है ,रुई की बाती,
कहीं सुदूर किसी किसान की पाती ,
काश उसके कर्जे उतरते रहे ,
उसकी बिटिया भी रंगोली सजाती रहे .
लौ दिए की जगमगाती रहे .
ये जो कीमती परिधान हम सब हैं पहने ,
कारीगरों ने बहाये थे खूब पसीने ,
कारखानों तक रौशनी आती रहे ,
धानी चुनर माथा सजाती रहे ,
लौ दिए की जगमगाती रहे .
ये जो मिट्टी के दिए कतार में रखे हैं ,
चाक पर की थी मेहनत,तब यूँ सजे हैं ,
कुम्हार ,मूर्तिकार भी दिवाली मनाते रहें ,
अन्नपूर्णा की रसोई भरमाती रहे ,
लौ दिए की जगमगाती रहे .
ये जो असली वैभव है , असली धन है ,
निरोगी काया और सरल, सुन्दर मन है ,
माँ लक्ष्मी कृपा बरसाती रहे ,
दुनिया आमोद मनातीं रहे .
लौ दिए की जगमगाती रहे .
उम्मीदों के स्वप्न सजाती रहे .
डॉ दीपिका शर्मा
डॉ. दीपिका आपकी यह रचना बहुत ही उत्तम दर्जे की है और दिवाली की असली फिलॉसफी पेश करती है. दिवाली पर ऐसी रचना मैंने पहले नहीं पढ़ी. त्योहारों से सम्बंधित एक ऐसा ही सन्देश अपनी आज प्रकाशित दिवाली कविता के अंत में मैंने भी देने की कोशिश की है. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी. आपकी यह कविता प्रिंट मीडिया (अखबार इत्यादि ) में छपनी चाहिए जो समाज के हर वर्ग के दिल को छुएगी.
उत्तम संदेशात्मक कविता
deep ghath ki kuch kavitayen………………………………………………………………………………………….. लाख चाहूँ मैं मगर, रात भर जलना मुझे
दमसाधे बैठा रहूँ, एकटक ना हिलना मुझे
हठ योग का हठीला, योगी सा मैं योग करुँ
जल के तन्हा मैं बुझु औरों का सहयोग करुं
नितात अकेला जल रहा मदीर में नन्हा दिया
दीवाली की कतारों में जो ईक रात हँस के जिया| 2हृदय में आग लगी तुम, दीप जला के क्या करोगे
अग्री बसी हो उर में, स्वयं ताप से तुम जलोगे
स्नेह संचित हो मन में, मदीर में तब आ जाना तुम
व्यथा अपने जीवन की, ईश्वर को बतलाना तुम
दीप की भाती जलगें जो प्रभु-चरणों में ठौर रहेगा
अग्रि-पथ पे चलेगे जो, उनका ही नया दौर रहेगा । 3जल रही दीप शिखा, रक्तिम आभा लिये
लघुतम जीवन की, स्वर्गिक शोभा लिये
और के खातिर, स्वयं को आदिप्त किया
अंधकार के विरुद्ध, संपूर्ण लिप्त किया
अंकित न उत्तीर्ण, इतिहास नन्हें दीप का
कर्म ही परिचय है, कर्मरत् प्रदीप का । 4घर के चिरागना बुझे, आतंक की आग में
विद्वेष न फैले कही, द्वेष की राग में
नफरत की न रहे, कोई शाम ओं सहर
मंदिर-मस्जिद के नाम से न फैले जहर
हर हाल में सबको ये आग बुझाना चाहिये
दीप से हमें नव-दीप जलाना चाहिये |
sooooooooooo niceeeeeeeeeee
भारतीय सभ्यता को समेटे हुए त्योहारो की अनुपम छटा का बिखराती अनेकता में एकता का सन्देश फैलाती उच्चस्तरीय कविता और उसमे शब्द संयोजन एक लेखन कला “सोने पे सुहागा” है !!
डॉ. दीपिका इसके लिए आप बधाई के पात्र है !! आपके जज्बे को सलाम !!
भारतीय सभ्यता को समेटे हुए त्योहारो की अनुपम छटा बिखराती अनेकता में एकता का सन्देश फैलाती उच्चस्तरीय कविता , और उसमे शब्द संयोजन एवं लेखन कला तो “सोने पे सुहागा” है !!
डॉ. दीपिका इसके लिए आप बधाई के पात्र है !! आपके जज्बे को सलाम !!
आप सभी को हार्दिक धन्यवाद