वसुंधरा प्यारी
ऐसे मनभावन मौसम में
खोल लिये तरू पंख
प्रकृति ने धरा के आंचल में।
चारों तरफ वह बंजर भूमि
बना हरित घास का टीला
तपता था भानु आतप से
आज औंस से रहता गीला
धरती के आभूषण प्यारे
नाच रहे विहंग मतवारे
हरित वस्त्र धारण किये
छिट-मुट कुसुम पड़ी चितकारी
धरा चीर की शोभा न्यारी
ऐसी चुनरियां प्रकृति रूपी
आई ओढ़कर वसुंधरा प्यारी ।
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बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण … शब्द संयोजन भी अच्छा है !!
प्रकृति का अच्छा चित्रण.