अन्जान हूं
न कोई मंजिल है मेरी
ना ही कोई घर है
मैं इस शहर में आनेवाला
एक शख्श, अन्जान हूं।
मेरी मंजिल कांटों भरी
शहर ये जंगल जैसा है
रास्ता कोई ना सूझे
इस जंगल में, अन्जान हूं।
मैं इस शहर में आनेवाला
एक शख्श, अन्जान हूं।
सर पे छत है पेड़ो की
नीचे खतरा जीवों का
जाऊं तो जाऊं कहां मैं
जंगल का मेहमान हूं।
मैं इस शहर में आनेवाला
एक शख्श, अन्जान हूं।
आंखें निस्तेज डरी हुई
भय थिरकन से भरी हुई
खतरा हर पल लगा हुआ
गले में अटकी जान हूं।
मैं इस शहर में आनेवाला
एक शख्श, अन्जान हूं।
-ः0ः-
सुन्दर अभिव्यक्ति ….!!
एक सर्वाहारा आम आदमी की आंतरिक मनस्थिति का भावुक चित्रण