करता चला गया।
मन के भावों को
यूं ही बस
कागज के पन्नों पर
उकेरता चला गया
जीवन के हर पहलू को
सुखों ओर दुखों को
लेखनी की नोक से
मुलायम नाजुक से
कोमल पन्नों पर
खुरचता चला गया
हर दुख, हर कष्ट सहा
पर दुखों से डरकर मैंने
कभी किसी का बुरा न चाहा
जीवन का अभिन्न अंग जान
कोरे चिट्टे लचीले ता पर
पोतता चला गया ।
-ः0ः-
बिना अवसाद के जीवन जीने का यही तरीका है. तभी तो कहा गया है
“विधि का विधान जान हानि लाभ सहिए
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए”
इसका यह मतलब कदापि नहीं की तरक्की की कोशिश ना हो. बस असफलता से निराशा नहीं होनी चाहिए.