“बदला है परिवेश देश का
पर नहीं है बदला भेष देश का
ना आती व्यथा नजर किसी को
गुजरे हुए इतिहासों की
कितने कत्लेआम झेले है हमने
ना आदि पता है ना अंत इसका
टुकड़े-टुकड़े किया देश का जिन्होंने
वो वीर बलिदानी कहलाते है
जो बलिदान हुए देश के खातिर
वो हिंसक मानव कहलाते है
बदला है आज जमाना जरूर
पर नहीं है टुटा हमारा गुरुर
मूर्खो की एक टोली है
देश के बुधजिवी वर्गों की
नाम उड़ाके हवा में खुद का
करते है हमको दिग्भ्रमित
लौटाते है सम्मानो को
कहके देश की स्थिति गंभीर
नहीं लौटाया था सम्मान इन चिरकुटों ने
जब कत्लेआम हुए थे देश में
झुलस रहा था देश जब दंगो की आग में
सरहद पे मारे जा रहे थे जवान हमारे ,
हो रहे थे जब बम ब्लास्ट घरों में हमारे ,
हो रहे थे शिकार जब पुलिस वाले
नक्सलियों की गोलियों से
प्रांतवाद और सम्प्रदायवाद के नाम पे,
हो रहे थे लहूलुहान निर्दोष लोग,
असहिष्णुता नहीं दिखती थी किसी को तब
जब गली-गली में होते थे बलात्कार रोज ,
नेता बन जोक ,चूसते थे देश को ,
सरेआम चौराहों पर
जब लुटती थी वर्दी की इज्जत ,
चढ़ते बलि की वेदी पे पाखंडो के नाम कभी .||”
wah wah omender sukal ji bahut achhi rachna
Dhanyavad mitra…