दिवाली क्यों मानते हैं, करो ये स्मरण
उपहारों की चकाचौंध में, भूले अपनापन
हर एक करता है दिवाली का बेसब्री से इंतज़ार
मन में चाहत की, हो उपहारों की बौछार
उपहार देने की चाहत का ,एक ही है उसूल
उसकी कीमत से कई गुना, करना है वसूल
आधुनिक दिवाली का क्या हो गया है स्वरुप
दिखावे में है सौंदर्य और राम आदर्श हुए करूप
प्रभु राम की अयोध्या वापसी से हुआ था इसका आगाज़
क्या आज की पीढ़ी को है इसका जरा सा अंदाज
आज का बेटा राम नहीं, और न ही दरसरथ हुए बाप
सत्य, मर्यादा ,और संस्कार हुए बीते दिनों की बात
धन दौलत के लिए ही करते लक्ष्मी पूजा
ये सबका भगवान और नहीं कोई दूजा
इस शुभ पर्व का कुछ इस तरह हो रहा सत्यानास
लेंन देंन के चक्कर में, राम नाम लगता है उपहास
आओ इस बार की दिवाली कुछ अलग सी मनाये हम
इस मंगल बेला पर , प्रेम दीप जलायें हम
हितेश कुमार शर्मा