सहिष्णुता-असहिष्णुता का बना घाल
यह मुद्दा बना बेमिशाल
कोई इस पर देता है सफाई
कोई इस पर करता है लिपाई ,
सभी इसके लिए एक दूसरे पर दोष मढ़े
इसके लिए तर्क भी ग़ढे
यह मुद्दा समाज में कोढ़-खाज की तरह फैल रहा
मिडिया में आज यह ब्रेकिंग न्यूज बन रहा ,
कोई अवार्ड तो कोई पुरुस्कार लौटा रहा
खूब पब्लिसिटी पा राहा
हर चैनल पर है इसका ही चर्चा
इसमे न है कोई खर्चा ,
हरतरफ गर्मा-गरम वहस है छिड़ी
हल से लोगों का है कोसो का दुरी
बस लोग यू हीं गाला फाड़ रहें
जन-जनता को उकसा रहें ,
जनता भी समझती है इनके चाल को
राजनीतिको एवं कुछ बुध्दिजीविओ के घाल को
दोनों के तर्क-वितर्क में
कुछ लोग फड़फड़ा रहा ,
नरेन्द्र भी दो पंक्ति लिख इस पर
करना चाहता है आत्मसात
हो इस पर चिंतन
न हो कोई धमाल ,
सहिष्णुता-असहिष्णुता का बना घाल
यह मुद्दा बना बेमिशाल।
अच्छा व्यंग. इस विषय पर कृपया मेरी दो रचनाए “असहिष्णुता के सपने” व “मिलकर गाल बजाए” भी अवश्य पड़े और अपनी प्रतिक्रिया भेजें.
धन्यवाद श्रीमान जरूर देखेंगे
सुन्दर अभिव्यक्ति !!
श्रीमान कमाल के शब्द दिये आपने भी।
धन्यवाद , सब आप लोगों का अर्शीवाद है।