शीर्षक – जब तुम आओगी
मेरी ज़िन्दगी में जब तुम आओगी ,
मेरे घर में , मेरे कमरे पर , मेरे दिल पर ,
मेरे ख्याबो पर अपना अधिकार जतलाओगी .
मेरे बिछावन पर पड़े सिलवटे ,
तुम्हारे होने का आभास दिलायेंगे .
तुम्हारे रेशमी जिस्म पर मैं जब इत्र छिर्कूंगा ,
तुम्हारे कमरबंद में जब अपनी उँगलियाँ घुमाऊंगा ,
तुम शरमाओगी ,इठलाओगी ,
मेरे करीब आओगी .
मेरी सुबह की नींद ,
तुम्हारे हाथों से बने चाय की ,
चुस्कियों से खुलेगी ,
मेरी शाम ,
तुम्हारे यौवन को निहारने में बीतेगी .
जब कभी मैं तुम से दूर जाऊँगा ,
तुम दरवाजे खोले मेरे इंतज़ार कर रही होगी .
बेचैन रहोगी , करवटे बदल रही होगी ,
जब मैं लौटूंगा ,
तुम आईने में ,
खुद को निहार रही होगी ,
मेरे पहुँचते ही ,
मेरे गले में अपनी बाँहो का हार डालोगी ,
मुझे देख मुकुराओगी , इठलाओगी .
मेरी ज़िन्दगी में जब तुम आओगी .——————————– — अभिषेक राजहंस
श्रृंगार व् प्रेम प्यास से ओतप्रोत बेहतरीन रचना. कृपया इसी तरह की मेरी दो रचनाए “इंतज़ार” और “मेरी कल्पना” भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया भेजें
प्रेम तृष्णा में व्याकुल हृदय की भावनाओ को भुबि पेश किया ….. अति सुन्दर !!
प्रेम तृष्णा में व्याकुल हृदय की भावनाओ को बखूबी पेश किया ….. अति सुन्दर !!
Pyar ki achi abhiwaqti hai