भुला न पाओगे जीवन में,
कुछ ऐसा फ़साना लिख जाऊँगा !
याद करोगे मेरी वफाये
जब दुनिया से विदा हो जाऊँगा !!
आज नकारा कह लो तुम
पर अकेले में याद बहुत आऊंगा !
पाओगे खुद को तन्हा तुम
जब दुनिया से बेगाना हो जाऊँगा !!
धन से मै आज कंगाल सही
कल यादो का पिटारा भर जाऊँगा !
ढूँढोगे चुन चुन कर तुम
कदमो के ऐसे निशाँ छोड़ जाऊँगा !!
मिटा लो ख्वाहिशे नफरत की
जिन्दा रहते सब सह जाऊँगा !
एक बार चला गया जहां से
फिर प्यार का सागर नजर आऊंगा !!
चला था सफर पे उगते सूरज की तरह
वक़्त के संग ढलते-ढलते ढल जाऊँगा
माना आज कद्र नही “धर्म” की
कल आँखों का तारा बनके रह जाऊँगा !
भुला न पाओगे जीवन में
कुछ ऐसा फ़साना लिख जाऊँगा !
याद करोगे मेरी वफाये
जब दुनिया से विदा हो जाऊँगा !!
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{{______डी. के. निवातियाँ _____}}}
मन के प्यार को कटुभाषी अपनों को बताती रचना. बेहतरीन.
शुक्रिया शशिर जी !!
क्या बात, क्या बात, क्या बात…..लाज़बाब रचना
शुक्रिया श्याम जी !!
उदासीन विचार में भी आशावाद की झलक दिखाती रचना । अति सुंदर ।
धन्यवाद राज जी !!
element of sentiment.
Thanks for anticipate !!