सुबह से ये वादा किया
शाम को अपनी ज़ुबान दी
उनसे हर नज़दीकी मिटा देंगे
फासलों को आगोश में ले लेंगे
यादों में भी याद न करेंगे
एहसास लफ्ज़ से नफरत करेंगे
भूले से भी कभी आवाज़ न देंगे
लेकिन ……
तेरी गूंजती हसीं ने सुबह को बहका दिया
लफ़्ज़ों की शरारत ने शाम को बहला लिया
ज़ेहन में दफन बेताबी ने मंज़र पिघला दिया
तेरे इश्क़ की कशिश ने फासलों को रुला दिया
बेकरार निग़ाहों ने यादों को गले लगा लिया
तेरी दीवानगी ने हर एहसास जगा दिया
जादू भरी बातों ने हर बोल खिला दिया
भूले से भी कभी भूल नहीं पाऊँगी तुझे
मेरी किस्मत को तूने ये सीखा दिया
—- स्वाति नैथानी
अति भावनात्मक तरीके से आपने बिछड़े प्रिय को याद किया. पढ़ने वाले को भी पीड़ा महसूस होती है
प्रेम की गहराइयो को छूती और उसकी अमिट छाप को उजगार करती अछ्सी रचना !!
प्रेम रस से ओतप्रोत एक अच्छी रचना ।
क्या खूब कहती हैं, बड़ी सुन्दर लिखती हैं…………..
thank you everyone fro your appreciation and encouragement