मैं और प्रकृति
संध्या के वक्त
प्रकृति के आंगन में
मैं ओर प्रकृति
बस अकेले दोनों थे।
प्रेम से ओत-प्रोत
मधु में लिपी-पुती
वाणी में मधुरता
वो मेरे सामने थी
अर्धनग्न घुंघट में छिपी
बैठी थी सकुचाये हुये,
मैं ओर प्रकृति
बस अकेले दोनों थे।
मंदिरा के प्यालों सी आंखें
गरम-गरम महकती सांसे
हरे शाल में लिपटी हुई
खिल उठी थी मेरी बांछें
देकर अपने तन की खुशबु
सारे आंगन को महकाये,
मैं ओर प्रकृति
बस अकेले दोनों थे।
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प्रकृति के माध्यम से प्रेम भावनाओ का सुन्दर चित्रण
सुन्दर अभिव्यक्ति