आज कल साईं बाबा की पूजा पर विवाद चल रहा है
इस बेवज़ह के झगडे से किसी को क्या मिल रहा है
वो कहते हैं मंदिरों से साईं की सारी मूर्तियाँ हटाओ
एक मुसलमान फ़कीर को ईश्वर ना तुम बनाओ
जब मंदिरों में सारी मूर्तियाँ ये लग रहीं थी
विरोध की ये ज्वाला तब ठंडी क्यों पड़ी थी
कोई कहता है साईं अल्लाह को मालिक बुलाता था
नशा वो करता था और मांस वो खाता था
अल्लाह और ईश्वर तो दोनों पर्यायवाची हैं
जिसकी उँगलियों पर ये सृष्टि सदा नाची है
शिव ने भी तो हमारे अघोरी रूप धारा
भांग का नशा था उनके गण और उनको प्यारा
माँ काली की जो मूरत हमने मन में सदा बसाई
दानवों के रक्त से ही उनकी जीभ ने लालिमा वो पाई
भैरों की मूर्ति भी तो हम मंदिरों में धरते हैं
मदिरा और पशु बलि से उनकी पूजा भी करते हैं
एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति हिन्दू दर्शन ये कहता है
तो फिर किसी झगडे का मतलब ही कहाँ रहता है
अहं ब्रह्मास्मि के अनुसार तो ईश्वर हे सबके अंदर
फिर साईं को क्यों बाटते हो धर्मों की दीवारों में निरन्तर
शिशिर “मधुकर”
nice observation.
बहुत बहुत आभार गिरिजा जी
समाज में फैली विषमताओं को उजागर करती अच्छी रचना….. :शिशिर जी, इसे विडंबना ही कहा जाएगा की सब कुछ जानते हुए भी कुछ लोग इन विषमताओं में फंस जाते है !!
Thank you very much Nivetiyaa jee.
ताजातरीन विवाद को रेखांकित करती एक सुंदर रचना ।
बहुत बहुत आभार राजकुमार जी