बार-बार जलाने के बाद भी
रावण साल दर साल
विशालकाय और विकराल रूप धारण
करता रहा
ना रावण को जलानेवाला हारे
ना ही रावण हारा
सिलसिला सदियों तक चलता रहा
रावण को जलानेवाले खुश है की
अपने से सौ गुना विशालकाय
रावण को हर बार जला ही देते है
रावण उनसे ज्यदा खुश है
जाने कब से जला रहे है फिर भी मुझे मार नहीं पाते?
कुछ बुधजिवी को गहरे रहस्य के बारे में पता था
रावण हर साल जालकर भी क्यों मरता नहीं
वो जानते है, रावण का हर साल जलना
जरुरी क्यों है?
कई परिवारों का चूल्हा जलता है
एक रावण के जलने से
रावण भी जनता इस सत्य को
उसे जलानेवाला वाले उसे क्यूँ नहीं मार सकते?
लालच,क्रोध,इर्षा,चाहत दुःख और वासना
जैसे रावण को कभी मारा ही नहीं सके
इसलिए उन्हें आभासी रावण को जलाना पड़ता है
और यही सत्य रावण की अमरता का रहस्य है
good poem………….
Thank for your appreciation,Girija Ji
Good concept……. Nice line
Thank for taking your time for the comment.
Thanks Anuj
बहुत सुन्दर और सत्यपरक रचना.
शिशिर जी कविता पढने के लिया आभार
Great effort Rinki
सम्हल -सम्हल कर चलने की अपनी आदत हो यारों |
चाहे मचल -मचल चले रामण तो मत घबराना प्यारे ||
Nice line
वर्तमान समाज को सीख लेने के लिए बाध्य करती वास्तविकता को समेटे हुए , सत्य असत्य के द्व्न्द को पेश करती ख़ूबसूरत रचना ………बधाई हो रिंकी !!
निवातियाँ जी प्रोत्साहन के लिए बहुत आभार, धन्यवाद