है आज भी याद वो दिन मुझको ,
जब पहली बार तुझे देखा |
गाल गुलाबी , चंचल चितवन ,
और अधरों की पतली रेखा ||
केसर मिली दूध सी रंगत ,
नव तरुणी की अल्हड़ काया |
कमर कमानी , नजरें तिरछी ,
मंद-मंद मुस्कान की माया ||
लाल दुपट्टा चुनर पीली ,
रहती हरदम छैल-छबीली |
ठहरे कदम पलट कर देखा ,
लेकिन कुछ मुँह से ना बोली ||
केश राशि थी निपट अमावस ,
धवल दंत थे सोम सरीखे |
सुर्ख हिना से सजी हथेली ,
कोई रूप सजाना तुमसे सीखे ||
बहुत पुरानी बात है ये ,
एक लम्बा अरसा बीत गया |
यादों के उन धागों से ,
मैं सपने बुनना सीख गया ;
मैं सपने बुनना सीख गया ||
नारी सौंदर्य का सजीला प्रस्तुतिकरण … इसके लिए आप बधाई के पात्र है !! बहुत अच्छे सुशील !!
आपकी परख आश्चर्यचकित कर देने वाली है …….
शुक्रिया बंधू !
बहुत सुन्दर श्रृंगार रचना सुशील
बहुत बहुत आभार …..
बहुत ही अच्छी चित्रण…उम्दा
धन्यवाद तिवारी जी …..
very nice picture…..
thank you very much ma’m………