फैशन की दौड़
कहां अभी स्वतंत्र हुए हम
आजादी के इस दौर में,
पांव हमारे पकड़ लिये हैं
फैशन की इस दौड़ ने ।
फैशन की दौड़ भाग में हम
भुला बैठे हैं संस्कृति को
जो हमारे अतीत थे
भुल गये उन गीतों को
हाथ पर हाथ धरे बैठें हैं
करना है कुछ ओर हमें
कहां अभी स्वतंत्र हुए हम
आजादी के इस दौर में।
माना भूली संस्कृति को
वापिस हम नही ला सकते
मगर जो वो आदर्श हैं
उनको भुला नही सकते
उन आदर्शों की नींव पर
महल बनाना हैं चाहते
कहां अभी स्वतंत्र हुए हम
आजादी के इस दौर में।
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संस्कृति का विलोपन पे १ अच्छी पहल….
THANX UTSAH VARDHAN KE LIYE JI
सच का आइना दिखाती रचना
yah Avita sarahneeya hai . thanks to writer .
आदर्शो को बनाये रखना ही अपनी संस्कृति की पहचान है जो आज भी पाश्चात्य पर भारी है !