बुरे समय को जो सह जाए वो है सच्चा वीर
वक्त की इन चोटों से ओ मनवा तू क्यूँ होता है अधीर .
कौन है अपना कौन पराया पता इसी में चलता है
काली रातों के बाद ही तो पूनम का चाँद निकलता है
तकदीरें भी इंसानो को अपना रंग दिखाती हैं
पर सुख का आनंद उसे मिलेगा जिसने देखी हो पीर.
बुरे समय को जो सह जाए वो है सच्चा वीर
वक्त की इन चोटों से ओ मनवा तू क्यूँ होता है अधीर .
बुरा वक्त जब राम पे आया सीता माँ ने साथ निभाया
सावित्री के प्रेम के आगे बस यमराज का चल ना पाया
बुरे वक्त की उनकी कहानी आज बनी संतों की वाणी
सदियों से उनकी कथाए सुनती है जनता होकर के गंभीर.
बुरे समय को जो सह जाए वो है सच्चा वीर
वक्त की इन चोटों से ओ मनवा तू क्यूँ होता है अधीर .
विश्व युद्ध में मित्र सेना ने जब जापान पर बम था गिराया
लाखों नरबलि चढ़ जाने से वहाँ का जन जन था घबराया
हर जापानी ने इस दुःख को जीवन का एक सबक बनाया
अपनी मेहनत और बुद्धि से फिर बदली अपनी तकदीर.
बुरे समय को जो सह जाए वो है सच्चा वीर
वक्त की इन चोटों से ओ मनवा तू क्यूँ होता है अधीर .
शिशिर “मधुकर”
Bahut sundar likha hai Shishir ji. Sarahniya hai.
शिशिर जी सुदर कविता है, आप को बधाई
आग में तपकर कुंदन कैसे बना जाता है सुंदर तरीके से समझाया है ! बहुत प्रेरणादायक रचना शिशिर जी !
very nice inspiration
आपने कुछ उन घटनाओं को याद दिलाया जो वाकई प्रेरणादायी हैं…शुक्रिया सर
बहुत अच्छी और प्रेरणास्पद कविता ।
उत्तम जी, रिंकी, अशिता, गिरिजा जी, बिमला जी व निवातिया जी आप सभी की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार