ग़ज़ल.कल न लौटेगा दुबारा।
क़द्र उसकी क्यों करें हम जिंदगी से जो है हारा ।
चल रहे है ठोकरों पर आज हम भी बेसहारा ।।
हारने का ये तो मतलब हैं नही क़ि टूट जाओ ।
टूटने के दर्द का तुम कुछ करो एहसास प्यारा ।
मिल सकेगी न कभी मंजिल उसे तुम मान लेना ।
जो निकल दरिया से भागा बुझदिलो सा कर किनारा ।।
उम्र भर जिसने न समझा उम्र की तरकीबिया को ।
उम्र ढल जायेगी उसकी क्या करेगा बन बेचारा ।।
ख़्वाब सपने जो सजायें चल उसे कर दे हक़ीक़त ।
वक़्त गुजरा न मिलेगा कल न लौटेगा दुबारा ।।
सोचने की उम्र तो अब है नही मेरे दोस्त रकमिश” ।
कब उड़ोगे हौसलों के पंख का लेकर सहारा ।।
—R.K.MISHRA
FANTASTIC SIR…REALLY APPRECIATING…
BEING VERY TRUE, IT BOOSTED MY ENERGY RIGHT NOW…
THANK U…SIR..
An inspirational poem well written.
very nice …………….!
सभी दोस्तों को तहेदिल से सुक्रिया नमन अभिनन्दन स्वागत ।
बहुत ही बढ़िया ………… राम केश जी …….
अति खूब ………