एक कच्ची धूलभरी सड़क हूँ
ईंटों का सहारा नहीं जिसे
न ही कोलतार की वह सख्त परत
गुजर गए कितने ही वाहन
बन कर घटना चक्र जीवन से
छाती को चीरते हुए
उखाड़ते बिखराते हुए पाहन
भारी गए मुझे दाब
जो हलके थे वे भी मुझपर
छोड़ गए अपनी अमिट छाप।
घटनाओं के दायरे में
पिसता हुआ मेरा मन
बीत जाएगा यूँही
धुल उडाता यह जीवन।
शुद्ध मन की पीड़ा का कच्ची सड़क के रूपक से बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है आपने उत्तम जी. बहुत खूब.
Thanks, sir.
सदैव की तरह जीवन की पेचीदगी को उकेरती “उत्तम जी” की उत्तम रचना !!
Thanks
Best hindi kavita hai man ko choolene wali hai .
Very deep feelings indeed.