सपनों का हम देश बनाएंगे
तिरंगे को फिर लहराएंगे
ना होगी मजहब की जंग
ना मंदिर-मस्जिद टकराएंगे
इर्ष्यामुक्त विचारों से
भाईचारे को अपनाएंगे
गीता और क़ुरानों में
एक ही वाणी नजर आएंगे
होगा सबको आज़ादी का अधिकार
ना पिंजरे में पंक्षी पाले जायेंगे
सपनों का देश हम बनाएंगे ….
न्याय का एक पैमाना होगा
ना अमीर-गरीब में भेद करेगा
सबको होगा शिक्षा का अधिकार
ना जीवन कोई अनपढ़ गुजरेगा
पेट में होगी रोटी सबके
ना रात कोई भूखी बीतेगी
ना जलेगी कहीं दामिनी कोई
ऐसा देश बनाएंगे
सपनों का देश बनाएंगे ….
ऊँच-नीच का भाव ना होगा
गंगा ना कलुषित की जाएगी
स्वर्णिम अपने आदर्शों से
फिर नारी पूजी जाएगी
भावुक होंगे रिश्ते फिर से
आत्मीयता ह्रदय में फिर आएगी
बुजुर्गो को सम्मान,बच्चों को स्नेह
जीवन को सदा महकाएगी
छल,कपट,दम्भ,द्वेष से मुक्त विचार
जीवन में खुशिया लाएंगी
लाके कृषि में आधुनिकता
रोजगार इसे बनाएंगे
सपनों का देश बनाएंगे ..||
ओमेन्द्र जी विचार अच्छा, इसके लिए सामाजिक एवं व्यक्तिगत मनोवृति का बदलना आवश्यक हैं !!
ओमेन्द्र जी देश के उज्जवल भविष्य की आशा से लबरेज़ रचना. कृपया इसी विषय पर मेरी रचना “हमको देश बनाना है” पर भी अपनी प्रतिक्रिया भेजें.
निवतिया जी अवं शिशिर जी उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ..