चल आज दिल फिर प्यार से, उस नाज़नी को याद कर !!
वही गेसुओं की छांव को, उसी ताजगी को याद कर !!
रख फिर गुलाब खतुत में, तरकीब सारे आजमा
वही बेबसी , वही बेकली, उसी आशिक़ी को याद कर !!
अभी नाजुकी की है इब्तेदा, रानाई तो निखरेगी ही
वही सांवरी , वही मनचली, उसी बावरी को याद कर !!
आजाद कर मेरी रूह को, मेरी तश्नगी का इनाम दे
रही गुफ्तगू में जो मुब्तला, उस शाइरी को याद कर !!
तू चाँद है तेरे इश्क़ में, लाखों सितारे गिरफ़्त हैं
कि खुदा तुझे माना करे, उस ‘सारथी’ को याद कर !!
अच्छी रचना !! बहुत खूब !!
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब ! सादर प्रणाम ! 🙂
खूबसूरत रचना है.
बहुत बहुत शुक्रिया ! सादर नमन ! 🙂
बहुत बहुत शुक्रिया ! सादर नमन ! 🙂