रंग बिरंगे उलझे धागे,
सुलझाने में मैं उलझा हूं ।
क्यूं उलझे और कैसे उलझे
इन प्रश्नों में मन उलझा है ।
कभी इधर से कभी उधर से,
सिरा ना कोई हाथ लगा
चेष्टा हर, हताश है लौटी,
हल ना कोई हाथ लगा ।
प्रेम के धागे सुलझाऊं जब,
अहंम आड़े आ जाता है ।
स्नेह और ममता जागृत हों जब,
मोह मन को भरमा जाता है ।
परमार्थ की राह कठिन है,
‘मैं ‘ और ‘मेरा’ भाव प्रबल
निस्वार्थ भी रह नहीं पाता,
इच्छाओं पर स्वार्थ सबल ।
धागे मेरी क्रियायों के
प्रतिक्रियायों संग उलझे हैं,
किसे संवारूं किसे नकारूं
प्रश्नोत्तर सभी अधूरे हैं ।
धैर्य, शान्ति, सहिष्णुता,
खो गए अन्धेरी राहों में
ममता, करुणा लुप्त हो गईं
कहीं सागर की गहराई में ।
पथ प्रदर्शक कौन बने अब,
कौन भरे मन में उत्साह,
कैसे सुलझें उलझे धागे,
कैसे रंग खिलें हर राह ?
कृष्ण बन अब तो आए कोई
अर्जुन को राह दिखाने को,
अन्तर्द्वन्द से उत्पीड़ित,
मेरी उलझन सुलझाने को ।
Bahut sundar rachana.
राज कुमार जी आप के प्रेरणा दायक शब्दों के लिए धन्यवाद ।जब कोई हमारी रचना को पढ़ता है वह भी मन को उत्साहित करता है,और यदि
पसन्द आए तो फिर कहने ही क्या ।Thank you.
बिमला जी आपकी यह रचना तो अत्यंत ही खूबसूरत है. आपने आज के हर व्यक्ति के द्वन्द को शब्द दे दिए
शिशिर जी ,जो हालात रिश्तों के, ज़िन्दगी के, समाज के हो चुके हैं उन्हें देख कष्ट होताहै पर कुछ कर नहीं पाते, मन उलझ के रह जाता है
कि यह सब जो हो रहा है उसे कैसे बदलें ।आप को कविता पसन्द आई I am honoured .thank you.
आपने जो उलझे धागे की रचना प्रस्तुत की है वो जिंदगी की हकीकत बयां करती है बहुत खूबसूरत रचना है आपकी !
पवन जी ,आप के शब्द मेरे लिए बहुत प्रेरणा दायक हैं ।आप ने अपने भाव मुझ तक पहुंचाए यह और भी उत्साह वर्धक हैं । I am very
thankful to you .
बहुत ही प्रेरणादायक एवं भावपूर्ण रचना ..
Thank you Omendra ji आप के शब्द मुझे बहुत प्रेरणा देंगे आगे लिखते रहने के लिए ,धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
गिरिजा जी ,आप को कविता पसन्द आई यह मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक बात है । I am very thankful to you.
बिमला जी मनोव्यथा को धागो के सूत्र में बड़ी सुंदरता से संजोया है, रचना बेहतर एवं सार्थक बन पड़ी है !!
निवातियां जी आप स्वयं इतना अच्छा लिखते हैं, आप जैसे कवि को मेरी कविता पसन्द आई यह मेरे लिए बहुत हर्ष की बात है ।
I am thankful to you.
हार्दिक आभार “बिमला जी” !!