कल शहर में कुछ शरीफों ने नफरत का बीज बोया
इंसानियत और भाईचारे को लहूलुहान कर दिया ।
आपस मे गले मिलने वाले अब गला काट रहे हैं
अच्छे खासे बसेरे को श्मशान कर दिया ।
परिंदे भी चहचहाने से डरते हैं अब यहाँ
हरे भरे उपवन को बियाबान कर दिया ।
बस्तियाँ जो खुशियों के गीत गातीं थीँ कभी
जानवरों की तरह उनको भी बेजुबान कर दिया ।
सहमी हुई निगाहें अब दरीचों से झाँकती भी नहीं
भुजंगों को उनका जा निगहबान कर दिया ।
गम की चादर ओढे मानवता सिसकने लगी “राज“
इतना मुश्किल उसका जो इम्तिहान कर दिया ।
राज कुमार गुप्ता – “राज“
वर्तमान भारत की हमारे देश के झूठे बुद्धिजीवियों द्वारा की गई दुर्दशा का सुन्दर चित्रण
Thanks for praise & in depth analysis.