कल राह से गुजरते हुए
झुण्ड एक मुर्गो का मिला !
चल रही थी उनकी एक सभा
विषय बड़ा गंभीर मिला !!
एक दुबला सा मुर्गा
उम्र में था वो सबसे बड़ा !
हिलता डुलता था खड़ा
कुछ नन्हे और युवाओ से
चहुँ और से था घिरा हुआ !!
रुआंसा होकर बोल रहा था
बड़ी शिद्दत से समझाता हुआ
देखो मेरे प्यारे बच्चो
अपनी तो वक़्त बीत गया
जब अपना भी भाव था !!
आज हालत बिगड़े है
मानव समाज में सब बिफरे है
काम आता किसी को रास नही
बनकर घूमे रहे सब नबाब
महगाई की मात खाए हुए !!
एक बुजुर्ग को अखबार पढ़ते
चौपाल पर हमने कहते ये सुना है
दाल रोटी भी अभी अब
गरीब के हाथ से निकलते सुना है
इससे तो सस्ता अब मुर्गा हुआ
ये व्यंग कसते हमने उनको सुना हैं
हालात अब खराब है बच्चो
खुद की खैर मनाओ सुना है
दाल रोटी को छोड़ कर अब
रोज मुर्गे की दावत उड़ाओ सुना है !
इसलिए अच्छा है इस दुनिया को
छोड़ कर कही जंगल में निकल जाए
वन्य जीवो की तरह हम भी
अपना एक शक्तिशाली झुण्ड बनाये
कोई उठाये जो अपनी नजर
फिर हम उसको सबक सिखलाये
काम नही है हम किसी से
जान हमे भी कितनी प्यारी बतलाये
हमने भी सीखा है शान से जीना
तोड़ उनका घमंड उनको ये समझाये !
तुमने कब हमारी परवाह की
जब चाहा अपने स्वाद की खतिर
हमारी गर्दन मरोड़ दी !
तुम्हारी दाल से हमे क्या लेना देना
संतान हम भी उस परमात्मा से
फिर क्यों तुमने कहावत हमसे जोड़ दी !!
संभल जाओ ऐ खुद के बन्दों
हम भी तो उसी खुदा की सन्तान है
जीते हो तुम जिस शान से
हमको भी जीने का वैसे अधिकार है !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]@@
अच्छी व्यंगात्मक कविता
हार्दिक आभार “अनुज”
शाकाहार की ओर प्रेरित करती ओर महंगाई पर कटाक्ष करती रचना. जीवों पर दया करने का सन्देश भी देती है
हार्दिक आभार “शिशिर जी”
अच्छी रचना….. बेजुबान जीवो के दर्द को बखूबी बयां किया है आपने….!!!!
शुक्रिया … श्याम तिवारी !!
अन्य जीवों के प्रति इंसान के स्वार्थ सोच का व्यंगात्मक चित्रण आपने काफी खूबसूरती से किया है ।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका ………!!
Sir, Aaapki murge wali rachna pada aur khush bhi hua, ishliye ki jeene ka adhikar har ek pranchi ko hona hi chahiye. Aaj ke daur mein bhale ham badal rahen hai lekin kishi ke bhi jan se khelna ek apradh hi nahi bahut badi pap hai. ishke liye koi bhi aawaz uthata hai to ishka nazar andaz nahi karna chahiye , waise to apni margi ke log bhare pade hai. par manawta bhi ek cheej hai jispar hamen chalni hi chahiye. hatya par rok lagni hi chahiye. Murge ke pure khandan par aap ne jo dar dikhaya hai wah kabile tarif hai. aisha katai nahi honi chahiye.
thank you.
आपकी मूल्थयवान प्रतिक्रिया के लिये थन्यवाद बिन्दू ।।
बहुत ही सटीक उम्दा रचना………..
रचना नजर करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद मनी……!