पढ़के झूठा इतिहास आज हम
खुद पे गर्व जताते है
बाँट देश को टुकड़ों में
आनंद की बंशी बजाते है..
जिन कंधो ने हो खड़े साथ
आजादी को कभी लड़े थे जंग
बहाके एक दूजे का लहू आज
मन में भरते है उमंग …
हाथ सहादत में जो उठते थे कभी
आज लहू बहाने को उठते है
तान बन्दुक सीने पे फिर
हर्षित खुद को हम करते है ..
शहीद हुआ जो देश हित में
आतंकी इतिहास में उसे बताया है
मैला किया देश को राजनीती की गंदगी से जिसने
हमने महापुरुष उसे बनाया है …
गौतम बुद्ध और विवेकानद के आदर्शो पे चलने वाला
जो देश ना थे कभी किसीसे डरने वाला
आज भटक गया है खुद के सिद्धांतो से
पहन मुखौटा धर्मो वाला …
होती थी श्यामल जो धरती कभी
धन-धान्य से होती भरी पड़ी
तन हुआ है छलनी आज उसका
रक्तो से है वह सनी पड़ी..
क्या जीवन के मूल्य सभी
आज धता बताये जायेंगे
धर्मग्रंथो के ज्ञान सभी
क्या किस्सों में सुनाये जायेंगे ..
नाम पे मजहब के हम सब
लहू बहा रहे एक दूजे का आज
प्रेम की मजहबी परिभाषा को
रक्त-रंजीत हमने किया है आज ….
वर्तमान परिपेक्ष्य में सत्यपरक रचना !!
धन्यवाद बंधू …..