त्रिपदा अगीत- -१६-१६ मात्राओं के तीन पदों वाला अतुकान्त गीत है जो अगीत कविता-विधा का एक छंद है—
१.
.अंधेरों की परवाह कोई,
न करे, दीप जलाता जाए;
राह भूले को जो दिखाए |
२.
सिद्धि प्रसिद्धि सफलताएं हैं,
जीवन में लाती हैं खुशियाँ;
पर सच्चा सुख यही नहीं है|
३.
चमचों के मजे देख हमने ,
आस्था को किनारे रखदिया ;
दिया क्यों जलाएं हमीं भला|
४.
जग में खुशियाँ उनसे ही हैं,
हसीन चेहरे खिलते फूल;
हंसते रहते गुलशन गुलशन |
५.
मस्त हैं सब अपने ही घरों में ,
कौन गलियों की पुकार सुने;
दीप मंदिर में जले कैसे ?
६.
तुमसे मिलने की खुशी भी है ,
न मिल पाने का गम भी;
कितने गम हैं जमाने में।
7.
खडे सडक इस पार रहे हम,
खडे सडक उस पार रहे तुम;
बीच में दुनिया रही भागती।
८.
कहके वफ़ा करेंगे सदा,
वो ज़फ़ा करते रहे यारो;
ये कैसा सिला है बहारो।
“आदमी हो तो”
लेखनी को धार दो
जीवन सुधार लो |
कलम गर उठाओ
समाज को सुधार दो |
हुनर है तो हॉक दो
गली मुहल्ला बाँक दो |
सत्य का साथ दो
हवा का रुख आंक लो |
गर आदमी हो तो
आदमी का साथ दो ||
श्याम जी अत्यंत अद्भुत विधा और रचना है पढ़कर आनँद आ गया
धन्यवाद सुखमंगल जी एवं शिशिर जी …