जलती आँखे देखीं हो मैंने उसकी
या झिड़की खाई हो झील किनारे तीखी
चाहा जब मैंने जीना जीती कला को,
ठहरी आँखों में बहकर प्राण सरीखी।
सच कहूँ तो ऐसी बात नहीं, मैं झिझकू
पल पल श्वांसो में लेकर जीता हूँ
लम्बी अलको गहरी पलकों में
खो मैं संग जीवन पीता हूँ ।
फिर भी लगता है अकसर मुझको
मुठ्ठी में जीवित मछली मैंने पकड़ी है
नग्न कटि छूकर, मुस्काकर गहरी
आँखों की बहती लाली जकड़ी है।
सम्मुख आने से सोच यही डरता हूँ
माथे की रेखाएं ही न बन जाऊ।
अपनी अयोग्यता को फहराकर मैं-
उससे न कहीं ठुकराया जाऊ ।
ये मन के धागे, उलझाते पर
क्यों बैठ जाऊ यूँ ही मैं हारा।
धारा हो कोई तो भी क्या, इस
नदिया का होगा कोई किनारा।
वाह औचित्य युवा मन की अपनी प्रियतमा के प्रति प्रेम अभिलाषा और उससे अपने प्रेम को व्यक्त करने वाले झंझावातों का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है आपने. आपका शब्द चयन आपको हम सभी लोगों से अलग खड़ा करता है और उच्च स्तर की हिंदी को सहारा देता है. कृपया अलकों का मतलब स्पष्ट कर सकें तो अच्छा होगा.
आपकी उदार प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। अलकों शब्द का प्रयोग मैने बालों के लिए किया है ।
आत्म मंथन करती सुंदर रचना !!