जिंदगी अब और नही बाकी जरा चले आइये !
कही टूट न जाए डोर साँसों की चले आइये !!
माना के फासले बहुत है अपने दरमियान
तोड़कर सारे बंधन जमाने के चले आइये !!
रह जाएंगे गीले शिकवे यही पर धरे के धरे
उम्र भर पछताने से अच्छा अभी चले आइये !!
चाहत है मिलन की जीवन के आखिरी दौर में
होने न जाए खेल ख़त्म जिंदगी का चले आइये !!
न बेवफा तुम थे “धर्म” न वफ़ा हमने कम की
छोडो ये बेकार की बाते बस अब चले आइये !!
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[[———डी. के. निवातियाँ——–]]
वाह बड़े झुक कर प्रीतम को बुला रहे हैं आप
सही कहा शिशिर जी झुकने में जो आनद है उसका अपना अलग ही स्वाद है !!
अंतिम सांस तक आस कायम रखी है आपने ।
शुक्रिया …….!!
nice gajal. x
शुक्रिया ………!!