यादों का दस्तावेज़
वक़्त की पुरानी दराज़ से यादों का एक दस्तावेज़ मिला है आज। कहीं कहीं से तारीखों से क़ुतरा हुआ, हर्फ़ भी जिसके कुछ धुंधले जान पड़ते थे।
ज़िन्दगी के कई फसाने दर्ज मिले उसमें। कहीं बचपन का अल्हड़पन था तो कहीं जवानी की शरारतें दर्ज मिलीं। कहीं जीत का जश्न था तो कहीं मायूसी का लिबास ओढ़े थी ज़िन्दगी।
फिर अचानक एक कोरे सफ़े पर जाकर नज़र टिक गयी।
ऊपर मेरा नाम लिख कर किसी ने काटा हुआ था शायद, और नीचे दस्तख़त थे तुम्हारे…..
हर्फ़ = letters/alphabets
— अमिताभ ‘आलेख’
Nice line amitabh ji..
धन्यवाद ओमेन्द्र.
दो पंक्तियों में तारीफ़ करना चाहूंगा :-
“इस तरह उसने जिंदगी से मिटाना चाहा,
लिखकर नाम हमारा फिर मिटाना चाहा !!”
बहुत खूब कहा. अनेक धन्यवाद धर्मेन्द्र जी.
Amitabh taareekhe dhundlee pad sakti hai. Mitthee nahin hai.
सही फरमाया आपने शिशिर जी. धन्यवाद.