ममता को सींच जो यथार्थ खोता है
जो दे प्राण मर्त्य को वो जीवन होता है
वो धुँआ जिसके साए में घुट जाती है आशाएं
जो मानव को मुखौटे में समाये वो कफन होता है
भावनाओं से परे पर जीव को है धरे
जो बोझ है धरा पर, वो पाहन होता है
जो जल कर सृष्टि का आव्हान करता है
विशद प्रेरणा स्रोत बन कर उठा जो हवन होता है
बड़ी अनूठी प्रतिभा के धनि है “उत्तम जी” आप,
व्यक्ति और व्यक्तित्व की समावेशी उम्दा परिभाषा पेश की है आपने.. बधाई हो !!
हमारी रचनाओ पर भी अपनी प्रतिक्रिया दीजियेगा !!
Aapke arhirwad ke liye dhanyawad.
Apki kritiyan bhi anupam hai.
Abhi main apni purani kavitaon ko upload kar raha hoon. Vyastta ke karan meri pratikriya me vilamb hai.
उत्तम जी आपकी उत्कृस्ट रचना के तीसरे बंध पर कृपया मेरी रचना “इंसान और जानवर” अवश्य पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया भेजें
उत्तम कविता । साहित्य सेवा अपनी लेखनी से करते रहें । यही कामना । स्वस्थ रहें , यही प्रार्थना ।