मित्रो, यह कविता मैंने कुछ समय पहले लिखी थी जिसे आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ, समस्त कवि मित्रो से निवेदन है की अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे !!
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देव भूमि, ऋषियों मुनियो की पहचान, सारे जहां को सिखलाता ज्ञान !
जग में जिसकी अपनी पहचान, ऐसा अनोखा मेरा भारत देश महान !!
मस्तक जिसका हिमालय विशाल
डटा रहता सीमा पर बनकर ढाल
आँचल है जिसका नीला आकाश
बिखराता चहुँ और छटा विकराल !!
देव भूमि, ऋषियों, मुनियो की पहचान, सारे जहां को सिखलाता ज्ञान !
जग में जिसकी अपनी पहचान, ऐसा अनोखा मेरा भारत देश महान !!
नित्य प्रभात बेला माथे रवि साजे
निशा में दीप्ति संग चाँद विराजे
मधुर पवन चलती नित भर हुंकार
रंग – बिरंगे फूलो करते है श्रृंगार !!
देव भूमि, ऋषियों, मुनियो की पहचान, सारे जहां को सिखलाता ज्ञान !
जग में जिसकी अपनी पहचान, ऐसा अनोखा मेरा भारत देश महान !!
स्रोतस्विनी बहे कल कल करती
सरगम सुनाते यंहा जल -प्रपात,
सौंदर्य मेरे देश का कितना अनूठा
शस्यपूर्ण लहलाते खेत खलिहान !!
देव भूमि, ऋषियों, मुनियो की पहचान, सारे जहां को सिखलाता ज्ञान !
जग में जिसकी अपनी पहचान, ऐसा अनोखा मेरा भारत देश महान !!
नतमस्तक हो सबको शीश झुकाता
सहिष्णुता का सर्वदा पाठ सिखाता
निश्छल मन से यह करता स्वीकार
पूरब से पश्चिम तक होता यशगान
देव भूमि, ऋषियों, मुनियो की पहचान, सारे जहां को सिखलाता ज्ञान !
जग में जिसकी अपनी पहचान, ऐसा अनोखा मेरा भारत देश महान !!
—-:: डी. के. निवातियाँ ::—-
Nivetiya ji you have included much more about our great country in this poem. Good work
Yes SHISHIR JI The expansion area is very spacious indeed
देशभक्ती की अच्छी मिशाल पेश की आपने..!z
Thanks Dear
Bharat desh ke Vishay me bahut kuchh likha ja sakta hai. Apni sanskriti bahut purani hote hue bhi aaj hum videshon se itne prabhawit hain, yah chinta ka Vishay hai. Hamara itihas ko bhi anrejon ne tod marod diya hai.
Desh ke gungan kuch is tarah ho ki nayi pidhi ise pahchane.
Of course UTAAM JI, This area is very spacious and is very deserving of some description.
very nice poem. It makes us feel proud.
प्रशंसा करने के लिए हार्दिक आभार !!