यह कविता कुछ वर्ष पहले मैंने अपनी बेटी के कहने पर उसके स्कूल के लिए लिखी थी
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश.
सभी मतों का यहाँ है संगम
लोगों का है निश्छल सा मन
इस धरती के पावन हर कण ने
क्षमा शांति का दिया सन्देश
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
अपनी इस भूमि पर हमने
दुश्मन को भी गले लगाया
सबको अपना हक़ देने में
मन में कभी ना आया क्लेश
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
सारे मौसम इसमें मिलते
फूल सभी रंगो के खिलते
दुनियाँ की थाली को हमने
शाकाहार है दिया विशेष
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
रेगिस्तान, पहाड़ और समुन्द्र हमारे
यहाँ धरती की हर छटा निहारें
स्वर्ग सा लगता है ये हिमालय
जब सूरज करता इसका अभिषेक.
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
मेरा प्यारा भारत देश कहीं नहीं ऐसा परिवेश
शिशिर “मधुकर”
अपने देश की सुंदरता विश्व में सबसे निराली है !! उसका बखान बखूबी पेश किया !!
बहुत बहुत आभार निवातिया जी आपके शब्दो के लिए.
Century mubaarq
Century mubaarq. .!
बहुत बहुत आभार अनुज. ये तुम जैसे मित्रो की वजह से हो सका. अब गोदाम खाली हो गया है इसलिए कम रचनाए दिखेगी