एक चश्मा देखा है सपनों का तेरी आँखों में
एक खुशबु सा बसा है मन तेरे साँसों में
मुझे याद है वह मुलाकातों की महफिल सूरिली
मन के तारों को छेड़ा था किसी ने बातों ही बातों में
हर खंजर का वार है फिजूल अब तो
मिठास ही आती है आघातों में
उडते पंछी भी ढूंढ लेते हैं बसेरा साँझ ढले
तडपता मन फुदक रहा अब तक मायावी रातों में
– Uttam Tekriwal
नई चाहत के भाव दर्शाती सुंदर रचना