मेरे ख़्वाबों में आ आ कर, बढ़ा जाती है धड़कन को
मेरी तन्हाइयों में आ, सजा जाती है महफ़िल जो।
ख़ुदा मुझको बता दे ये कि मुझसे कब मिलेगी वो
कि मुझसे कब मिलेगी वो…..
कभी मुझको मिलेगी वो, कहूँगा हाल-ए-दिल अपना
नही देखा है दुनिया में, हसीं इतना कोई सपना।
ख़ुदा मुझको बता दे ये कि मुझसे कब मिलेगी वो
कि मुझसे कब मिलेगी वो…..
बहुत मुश्किल में है ये दिल, परेशां भी हैं अब साँसें
कि हर महफ़िल में उसको ही, तलाशा करती हैं आँखें।
ख़ुदा मुझको बता दे ये कि मुझसे कब मिलेगी वो
कि मुझसे कब मिलेगी वो…..
हसीं होगा वो मंज़र भी, दीदार-ए-यार होगा जो
मेरी क़िस्मत में लिखी है, जो मुझको कब मिलेगी वो।
ख़ुदा मुझको बता दे ये कि मुझसे कब मिलेगी वो
कि मुझसे कब मिलेगी वो…..
कि मुझसे कब मिलेगी वो…..
कि मुझसे कब मिलेगी वो…..!!!
— अमिताभ ‘आलेख’
अमिताभ यदि इस बैचनी को कोई सँभालने वाला मिल जाए तो सोचो पवित्र प्रेम की किन ऊचाईओं को पाया जा सकता है.
अब प्रेम में इस हद तक पहुँचने वाले बचे ही कहाँ है शिशिर जी. धन्यवाद आपका.
बेताब मन की अधीरता को सहजता से कह गए !! कमाल की रचना !!
आपके इन शब्दों के लिए शुक्रिया धर्मेन्द्र जी.