कहकर कितना कह पाउँगा
जता सकूंगा कैसे तुमको
सब कुछ जो मेरे मन में है
मैं कैसे बोलूंगा वो जो
खुद को ही ना समझा पाया
कैसे ढूंढूंगा मैं शब्दों को
कैसे सब कुछ सुलझा दूंगा ।
कितना तुम मेरे मन में हो
कैसे तुमको मैं जीता हूँ
पल पल आँखों में भरकर तुमको
कैसे मैं सपने बुनता हूँ
कैसे मेरी यादो में तुम
हरदम हंसती गाती रहती हो
कितना प्यार तुम्हे करता हूँ
कैसे तुमको समझा दूंगा
कहकर कितना कह पाउँगा ।
– औचित्य कुमार सिंह
औचित्य सही कहा आपने प्रेम तो पूरी तरह व्यक्त कर पाना तो असंभव है. कितनी ही कालजयी रचनाये लोगों ने समय समय पर इस प्रयास में लिखी लेकिन कोई भी अंतिम साबित ना हो सकी. वैसे भी आप जितना सोच सकते हो उतना बोल नहीं सकते व् जितना बोल सकते हो उतना लिख नहीं सकते.
प्रेम की गहराई को तो बस महसूस ही किया जा सकता है
प्रेम का सही मूल प्रकट किया है, प्रेम एक अनुभूति है जिसक्का शब्दों में वर्णन नही किया जा सकता !!