रिश्तों का विज्ञान समझना सबके बस की बात नहीं
जिनको ज्ञान है इस विद्या का उनको लगता आघात नहीं
जो होता नहीं वो दिखता है यहाँ जो दिखता नहीं वो होता है
इस कलयुगी सयानी दुनियां में हर निष्कपट आदमी रोता है
अपने स्वार्थ सिद्ध करने को सबके पास हैं तर्क यहाँ
इस हमाम में सब नंगे हैं न्याय की बात तुम करो जहाँ
जैसे जैसे परिवारों में अगली पीढ़ियाँ आती हैं
ऐसे अन्यायों की कारण रिश्तों की लाशें बिछ जाती हैं
बड़े बुजुर्ग भी इन मसलों में अपना रंग दिखाते हैं
अपने दुर्योधनों की ख़ातिर धृतराष्ट्र बन जातें हैं
कितनी सदियाँ बीत गईं पर हालत अभी ना बदली हैं
भाई चारे प्यार मोहब्बत की बातें सब नकली हैं
वो वक्त ना जाने कब आएगा होगा जब कोई घात नहीं
रिश्तों का विज्ञान समझना सबके बस की बात नहीं
जिनको ज्ञान है इस विद्या का उनको लगता आघात नहीं.
शिशिर “मधुकर”
बेहतरीन रचना है. “रिश्तों का विज्ञान” वाह क्या खूब कहा है आपने. लाजवाब रचना.
अमिताभ बहुत बहुत आभार
रिश्तो में ज्ञान विज्ञान दोनों फेल है आपकी पंक्ति “अपने दुर्योधनों की ख़ातिर धृतराष्ट्र बन जातें हैं ” बहुत ही रोचक एवं पूर्णतया अर्थपूर्ण है जो समाज में रिश्तो के प्रेम वश बुराइयो के पनपने का अहम कारक है !
धन्यवाद निवातिया जी
great sir…nice one
Thanks a lot Sonika
बहुत अच्छे, शिशिर जी, ” रिश्तों की लाशें “,बहुत सही term इस्तमाल की आप ने ।
बिमला जी बहुत बहुत शुक्रिया. इस रचना में, अमिताभ, निवातियाँ जी व् आपने तीन अलग अलग शब्द समूहों की प्रशंसा की है जो मेरे लिए गौरव की बात है. नए प्रयोगों की स्वीकार्यता से मनोबल बढ़ता है और कुछ और अच्छा करने की इच्छा बलवती होती है.
रिश्तों का विज्ञान ,सम्पूर्ण निचोड़ है आज की स्तिथी का👏👏👏👏
Tahe dil se shukriya Yogita Ji .