ग़ज़ल कुछ इस तरह से लिखने लगा है वो,
खुशबू की तरह दिल में महकने लगा है वो ।
आसुओं से करता रहा नफ़रतें जो उम्र भर,
गम-ए-दिल पी के अब बहकने लगा है वो ।
वक़्त भी कुछ इस तरह की चाल चल गया,
के राह-ए-ज़िंदगी में अब भटकने लगा है वो ।
कल तक जो हौसला था अब वो नहीं रहा,
एक उम्र हो गयी है बिखरने लगा है वो ।
माहौल भी शहर का ‘आलेख’ बदला है इस तरह,
अपने ही घर में हर रोज़ सिमटने लगा है वो ।
— अमिताभ ‘आलेख’
आपका मनोहक शायराना अंदाज, काबिले तारीफ़ है !
बेहतरीन रचनाओ की श्रेणी में एक उम्दा ग़ज़ल !!
धन्यवाद धर्मेन्द्र जी इज्ज़त अफज़ाई के लिए.
वाह क्या बात है अमिताभ. तुम अलग हो.
बहुत बहुत शुक्रिया शिशिर जी. प्रोत्साहना के लिए अनेक धन्यवाद.