।।ग़ज़ल।।मेरा क़िरदार पढ़ लोगे।।
R.K.MISHRA
मेरी खामोशियो में भी मेरा इज़हार पढ़ लोगे .
कभी दिल से जरा समझो मेरा किरदार पढ़ लोगे .
न साहिल है न मंजिल की मुझे परवाह रहती है .
मग़र है आँख का दरिया छलकता प्यार पढ़ लोगे .
जरा तुम रोककर कर देखो हमारे आँख के आंशू .
झलकती झील में अपना अलग संसार पढ़ लोगे..
अभी तक बात करते हो हमेसा ही इशारों से .
जरा आग़ोश में आओ दिली झंकार पढ़ लोगे .
महज़ ये फ़ासले ही है जो हमको दूर करते है ..
यकीनन पास आये तो मेरा इनकार पढ़ लोगे ..
अग़र है शौक तुमको तो जाते हो चले जाओ .
ज़रा फिसले मुहब्बत में ग़मो की मार पढ़ लोगे ..
नही होते है पैमाने किसी से प्यार करने के ..
खुली दिल की किताबो में लिखा एतबार पढ़ लोगे..
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ग़ज़ल अच्छी है,
आखिरी तीसरे शेर में “इनकार” की जगह “इकरार” शायद ज्यादा उपयुक्त होता
आंसुओं ने दिल के जख्मों को हरा कर दिया
जिंदगी भर जिंदगी का हक अदा कर दिया ?
हम रात-दिन नमाजे पढ़-पढ़ दुआ करते हैं
तेज इतनी की सीने में हम जलन रखते हैं ||
२- दर्द का रिस्ता कहीं जिसने निभाया होगा
उसकी नजरो में नहीं अपना पराया होगा |
हम सब भारतीय हमें रहना इस तरह होगा
गुल दस्ते में सजाये फूल जिस तरह होगा ||
बहुत अच्छी गजल है मिश्रा जी ।
सभी दोस्तों का तहे दिल से सुक्रिया ।
सुखमंगल जी बहुत अच्छे ।शुभ ।