आज इस कदर हालात पैदा हो गए
पैसा हाथ नही फिर भी धनवान हो गए
रसोई से दाल और कुर्ते से जेब गायब हो गए
पहनके फटी जीन्स जैसे हम नायाब हो गए
वक़्त ने कैसी बदली करवट, …………गर्व से सब कहे अच्छे दिन आ गए !!
मानवता में बढ़ रही विषमता के अफ़साने हो गए
गाय – भैंस से ज्यादा कुत्ते पालतू हो गए
कही सड़े अनाज गोदामो में कही बच्चे भूखे सो गए
गरीब मरता गरीबी में , अमीरो के ठाठ बड़े हो गए !!
वक़्त ने कैसी बदली करवट, …………गर्व से सब कहे अच्छे दिन आ गए !!
किस तरह राजनितिक माहोल के चलम हो गए
आस्था के नाम पर लोगो को लड़ाना आम हो गए
देश के मजदूर किसान आत्म हत्या को मजबूर हो गए
सरहद पर मरने वाले जवानो के हादसे खेल हो गए
वक़्त ने कैसी बदली करवट, …………गर्व से सब कहे अच्छे दिन आ गए !!
इस कदर देश में व्यापर के तरीके आम हो गए
बेरोज़गार खोज रहे काम दो जून की रोटी के लिए
इन्हे बेरोज़गारी भत्ते देने के फरमान हो गए
सोना, गाड़ी सस्ते हो अमीरो के लिए ऐसे बजट बनाने में कामयाब हो गए !!
वक़्त ने कैसी बदली करवट, …………गर्व से सब कहे अच्छे दिन आ गए !!
किस कदर आज समाज के हालात हो गए
धर्म गुरुओ के बड़े बड़े व्यापार हो गए
माँ, बहन, बेटियां बढ़ते जुर्म के शिकार हो गए
जुर्म की दुनिया के सरगना अब सरकार हो गए !!
वक़्त ने कैसी बदली करवट, …………गर्व से सब कहे अच्छे दिन आ गए !!
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[[_______डी. के. निवातियाँ ______]]
निवातियाँ जी विरोधाभास उकेर कर आपने भारतीय परिपेक्ष में अच्छे दिन आ गए का वास्तविक अर्थ लाने का सुन्दर प्रयत्न किया है. अंत तो बहुत ही रोचक है.
आपके अमूल्य वक़्तव्य का हार्दिक आभार !!
वास्तव में धर्मेन्द्र जी बहुत उम्दा रचना बन पड़ी है ये। अच्छे दिन आ गए पे सीधा कटाक्ष है आपकी यह रचना। लाजवाब।
तहदिल से शुक्रिया अमिताभ जी …….!!
आज के हालात को दर्शाती एक अच्छी कविता ।
बहुत बहुत धन्यवाद बिमला जी !!
अच्छे दिन आ गए……….करारा व्यग्य निवातियाँ जी……
बहुत बहुत धन्यवाद सुरेन्द्र जी ………..!!
आपकी रचना से निकले कटाक्ष अगर ५०% भी सही समझ आ जाएँ तो सच में अच्छे दिन आ जाएँ…..शब्द नहीं रचना की प्रशंसा के लिए….बेमिसाल…..लाजवाब…..
आपके अमूल्य वचनो का सह्रदय आभार बब्बू जी ……………..!!