लेटा था मैं समुंद्र किनारे
लोग दौड़े-दौड़े आए
मर गया ये तो..
किसी ने कहा
कितना सुन्दर बच्चा था..
दुसरे ने कहा
मैं शांत लेटा रहा समुंद किनारे
शरणार्थी लगता है
डूब कर मर गया
एक रोशनी चमकी
किसी ने फोटो लिया
किसी ने लेख लिख दिया
मेरी कहानी सात समन्दर पर तक गई
हंगामा ही हंगमा मचा
मैं फिर भी लेटा रहा समुंद्र किनारे
पहले कभी जब भूख-प्यास से रोया
दर पर दर घर को तरसा
किसी ने आवाज़ नहीं सुनी
आज शांति से सोया हूँ
लोग क्यूँ हंगामा मचा रहे है?
मानवीय मुददे को मुखर करती !! बहुत अच्छी सृजनशीलता !!
Thanks for your kind appreciation, your comments always bring smile on my face
बहुत भावुक रचना है
Thanks for your appreciation and comment
अयलन कुर्दी की याद को आपने बहुत ही सुंदर शब्द दिए है | सच है की आज मानवीय संवेदना शून्य हो गयी है और सिर्फ दिखावे को होड़ लगी है |
बहुत सुंदर ………
अप्रतिम ||
सुशिल जी धन्यवाद, हम बहुत ही असंवेदनशील दुनिया में जीते है, हमारी आदत सी है किसी के मरने के बाद हंगामा करना