उमड़ती घटाएँ गुजर जाती हैं तम-काल से जीवन की
रह जाते हैं सूखे नयन फिर भी कई बार
उजालों की दुनिया में नहीं रहता तन्हा कोई
अंधेरे को भी साथी बनाना पड़ता है कई बार
दिल के दर्पण को ढक रखा है गर्द के पत्तों से
आँखों के रास्ते भी झांका है हमने कई बार
मौत की लय में थिरकती है हर कदम जिंदगी
आशा-शिखा में जलते भी देखा है उसे कई बार
सुन्दर अभिव्यक्ति !!
दर्द की विरोधाभास द्वारा सुन्दर अभिव्यक्ति